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Bihar Board Class 12th Hindi Chapter 12 Tirichh – तिरिछ Subjective
पाठ – 12
शीर्षक : तिरिछ
लेखक : उदय प्रकाश
जन्म : 1952 माता , पिता : गंगा देवी , प्रेम कुमार सिंह
जन्म स्थान : सीतापुर अनुपपुर मध्य प्रदेश
1. लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आता ‘है’ क्यों ?
उत्तर – लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आने का कारण लेखक को सपना सत्य प्रतीत होना था ! परन्तु अब लेखक विश्वास करता है ! की यह सब सपना है ! अभी आँखे खोलते ही सब ठीक हो जाएगा इसमें पहले लेखक को अपने की बता प्रचलित विश्वास की सपने सच हुआ करते है ! लेखक कल्पना में जीता था ! परन्तु अनुभव से यह जान गया की सपना बस सपना भर है ! लेखक ने जटिल यर्थात को सफलता पूर्वक अभिव्यक्त करने की लिए स्वपन का प्रयोग किया है ! परन्तु जैसे ही लेखक का भ्रम टूटता है ! तो उसे डर नहीं लगता है ! और तिरिछ के सपने नहीं आते है |
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2. तिरिछ कहानी में वर्णित शहर के चरित्र से आप कितना सहमत है ?
उत्तर – लेखक इस कहानी का संबंध शहर के प्रति अपने जन्म जाट भय से मानता है’ यहाँ भी लेखक प्रतीक का साहारा लिया है ! ऐसा लगता है’ की संभावित शहर तिरिछ का प्रतीक है ! कहानी में शहरी तथा ग्रामीण जीवन के बिच उपजी खाई का चित्रण है ! शहर की आधुनिक संस्कृति से उपजी विकृति तथा द्वंद्व का ज्व्लंक उदहारण है’ लेखक के पिताजी की करुनामय कथा तिरिछ जैसे विषैले जंतु को प्रतीक स्वरूप कहानी में प्रतिस्थापित किया है ! कहानी में वर्णित शहर का चित्रण पूर्णतः उचित एवं निर्णयवाद रूप से सत्य है |
3. तिरिछ को जलाने गए लेखक को पूरा जंगल परिचित लगता ‘है’ क्यों ?
उत्तर – लेखक को पूरा जंगल परिचित इसलिए लगता है ! क्योकि इसी जगह से कई बार सपने में तिरिछ से बचने के लिए लेखक ने भागा था |
4. तिरिछ कहानी का सरांश अपने शब्दों में लिखे ?
उत्तर – तिरिछ कहानी उदय प्रकाश द्वारा लिखित अपने पिता की जीवनी है ! लेखक के पिताजी बहुत गंभीर प्रवृति के व्यक्ति थे ! वह पचपन साल के एक दुबले पतले व्यक्ति थे ! उनके सीर के सभी बाल लगभग सफेद हो चुके थे ! वे सोचते ज्यादा तथा बोलते कम थे ! परिवार के लोग उनके इस गंभीर व्यक्तित्व से सहमे रहते थे ! तथा उनसे बाते करने का साहस नहीं जुटा पाते थे ! उनका कम बोलना तथा गंभीर आचरण परिवार के लोगो के लिए एक पहेली थी ! ऐसे अवसर कम ही आते थे ! जब शाम को वह परिवार के सदस्यों के साथ लेकर टहलने के लिए घर से निकलते थे ! हमेशा वह तम्बाकू खाते थे !
तिरिछ कहानी के कहानीकार हैं
लेखक के पिताजी सीधे साधे व्यक्ति थे ! गाँव का जीवन उन्हें बेहद पसंद था ! शहर से उनका अप्चारिक सम्बन्ध था ! आवश्यक कार्यवश वे शहर जाते थे ! काम हो जाने के बाद शीघ्र वह लौट आते थे ! शहर की जीवन शैली उनकी भेष भूसा चाल ढाल भी ग्रामीण जीवन से प्रभावित थी ! एक दिन लेखक के पिताजी को तिरिछ काट लेता है ! जिसके बारे में लोक प्रचलित है ! की तिरिछ का काटा हुआ आदमी बच नहीं सकता है ! क्योकि तिरिछ ना केवल जहरीली जंतु होता है ! बल्कि काटने के बाद वह पेसाब कर लोट जाता है ! जिसका मतलब होता है ! की काटे आदमी की मुत्यु निश्चित है !
पिताजी को शहर से बहुत डर लगता है ! भरसक वह जाने से कतराते है ! किन्तु घर नीलाम हो जाने से उन्हें शहर जाने के लिए विवश कर देती है ! पिताजी शहर जाते है ! उसे बगले के गाँव के पंडित जी द्वारा धतूरा पिलाया जाता है ! धतूरा का असर होने पर वे अपनी चेतना खो बैठते है ! और लोग उन्हें पागल समझकर अनेक आरोप लगाकर पिट पीटकर मार डालते है | आधुनिक के दौर में इंसान अमानवीय और संवेदनहीन होते जाने की यह यर्थात वादी प्रस्तुती है ! कहानी में यर्थात को जादुई यर्थात के रूप में प्रस्तुत किया गया है ! जादुई यर्थातवाद का अर्थ वास्तविकता को छति पहुचाए बिना हैरत में डाल देना |