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Bihar Board Class 10th Sanskrit Chapter 7 Niti Sloka – नीतिश्लोकाः Subjective
पाठ – 7 नितिश्लोक
⌈ अर्थ स्पष्ट करे ⌋
1. यस्य कृत्यं न विध्नन्ति शीतमुष्णं भयंरतिः |
समृद्धि स्मुद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ||
उत्तर – प्रस्तुत श्लोक में कवी महात्मा विदुर जी पंडित के लक्षणों पर प्रकाश डालते हुए कहते है ! की जिस व्यक्ति के सत्य कर्म में विध्न – बाधाएं नहीं आती है ! और गर्मी – सर्दी भय और प्रेम तथा समृद्धि एवं अस्म्रिद्धि सब में एक समान बना रहता है ! वही पंडित है |
2. तत्वज्ञ सर्वभूतानां योगज्ञ सर्वकर्मणाम् |
उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ||
उत्तर – इस श्लोक में कवी विदुर जी कहते है ! की सभी प्राणियों में एक ही ब्रहात्व को देखने वाला और अपने जीवन के सभी सदभावो को पूर्ण करने के लिए सम्बन्धी उपायों को जानने वाला व्यक्ति ही पंडित कहलाता है |
3. अनाहूतः प्रविशाति अपृष्टो बहु भाषते |
अविश्वस्ते विश्वसिति मढचेता नराधमः ||
उत्तर – इस श्लोक में कवी विदुर जी कहते है ! की बिना बुलाए किसी के घर चले जाना और बिना पूछे बोलने लगना अविश्वासी व्यक्ति पर भरोसा कर लेना मुर्खता के ही नहीं , नीचता के भी लक्षण है |
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4. एको धर्म परं श्रेय क्षमैका शान्तिरुत्तमा |
विदयैका परमा तृप्तिः अहिन्सैका सुखावहाः ||
उत्तर – इस श्लोक के माध्यम से कवी विदुर जी कहते है ! की धर्म को धारण करने वाले व्यक्ति के लिए धर्म सर्वश्रेष्ट होता है ! और क्षमा को अपनाना शान्ति का प्रतीक होता है ! तथा विधा को प्राप्त करना परम तृप्ति का प्रतीक है ! और अहिंसा को अपनाना सभी सुखो का मूल्य है |
5. त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः |
कामाः क्रोध् स्तथा लोभ्स्तस्मादेतत त्रयं त्यजेत् ||
उत्तर – इस श्लोक के माध्यम से कवी कहते है ! की काम, क्रोध, और लोभ इन तीनो को स्वयं का नाश का कारण बताया है ! और इन्हें त्याग देना चाहिए |
6. षड् दोषाः पुरुषेणेहः हातव्या भूतिमिचछता |
निन्द्रा भयं क्रोध् आलस्यं दीर्घसुत्र्ता ||
उत्तर – इस श्लोक में कवी विदुर जी कहते है ! की हमें अपने जीवन के छः दोषों से दूर रहना चाहिए, उसमे निंद्रा, यानी नींद , तन्द्रा यानी हर काम में पीछे रहना, भय , क्रोध, आलस तथा दीर्धसूत्रता यानी आज का काम कल पर छोड़ना इन सभी छः दोषों को मानव का पतन बताया गया है ! इसलिए ये सभी दोष मानव के शत्रु है ! इन्हें त्याग देना चाहिए,, नहीं तो नाश निश्चित है |
7. सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद् या योगेन रक्ष्यते |
मृज्याः रक्ष्यते रूपं वृतेन रक्ष्यते ||
उत्तर – इस श्लोक में कवी विदुर जी कहते है ! की सत्य से धर्म की रक्षा होती है ! और अभ्यास से विधा की रक्षा होती है” और सजावट से रूप की रक्षा होती है” और अच्छे आचरण से कुल की रक्षा होती है |
8. सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः |
अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता स्रोताः च दुर्लभः ||
उत्तर – इस श्लोक के माध्यम से कवी विदुर जी कहते है ! की इस संसार में चापलूसी करने वाले तो सरलता से मिल जाएंगे ! परन्तु कठोर और हितकारी वचन बोलने वाला व्यक्ति तथा उसे सुनने वाला स्रोत ये दोनों बड़ी मुश्किल से मिलते है |
9. पूजनीया महाभागा: पुण्याश्च गृहदिपतयः |
स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्ता स्तरमाद्रक्ष्या विशेषतः ||
उत्तर – इस श्लोक में कवी विदुर जी कहते है ! की अपने सद्कर्मो से अपने घर को प्रकाशमान करने वाली महा भाग्यशाली लक्ष्मी रूपा स्र्तियाँ पूजनीय होती है ! इसलिए उनके लिए सुरक्षा का विशेष प्रबंध होना चाहिए |
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10. अकीर्ति विनयो हन्ति हन्त्यनर्थ पराक्रम |
हन्ति नित्यं क्षमा क्रोध् माचारो हन्त्य लक्षणाम् ||
उत्तर – इस श्लोक में कवी विदुर जी कहते है ! की अपयश विनय को नाश करती है ! तथा अनर्थ पराक्रम को नाश करता है ! क्षमा क्रोध को नाश करता है ! और कुल्क्ष्ण अच्छे विचार को नाश कर देता है ! अतः इन सभी बुरी आदतों को त्याग कर देना चाहिए |
〈 पाठ के साथ 〉
1. नितिश्लोका पाठ में मूढ़चेतानराधम किसे कहा गया है ?
उत्तर – जिस व्यक्ति का स्वाभिमान मरा हुआ होता है ! जो बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है ! तथा बिना कुछ पूछे बक – बक करता है ! अविश्वसनीय पर विशवास कर लेता है ! ऐसे हृदय वाला व्यक्ति नीच होता है ! अर्थात ऐसे ही व्यक्ति को नितिश्लोका पाठ में मूढ़चेतानराधम कहा गया है |
2. नितिश्लोका पाठ के आधार पर षड दोषों का हिंदी में वर्णन करे ?
उत्तर – मनुष्य के छः प्रकार के दोष निंद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस, तथा दिर्धसुत्रता, ऐश्वर्य प्राप्ति में बाधक बनने वाले होते है ! नीतिकार का कहना है ! की जिसमे ये दोष पाए जाते है ! वह चाहते हुए भी सुख की प्राप्ति नहीं कर सकता है ! क्योकि अधिक निंद्रा के कारण वह कोई काम समय पर नहीं कर पाता है ! तो तंद्रा वश हरन काम में पीछे रह जाता है ! और भय के कारण काम आरम्भ नहीं करता है ! तो क्रोध के कारण बना काम भी बिगाड़ता है ! इसी प्रकार आलस के कारण समय का दुरूपयोग होता है ! तो दीर्धसूत्रता आथवा काम को कल पर छोड़ने के कारण काम का बोझ बढ़ जाता है ! फलतः वह जीवन के हर क्षेत्र में पीछे रह जाता है |
3. नितिश्लोका पाठ के अनुसार कौन सा तीन चीज त्याज्य है ?
उत्तर – नितिश्लोका पाठ के अनुसार उन्नति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को निंद्रा , क्रोध , आलस और काम टालने की आदत को भी सदा के लिए छोड़ देना चाहिए |
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4. नरक जाने का द्वार कौन – कौन सा है ?
उत्तर – नरक जाने का तीन द्वार होते है ! काम, क्रोध, और लोभ ये तीनो रास्ते आसानी से नरक में पहुंचा देते है |
5. नितिश्लोका पाठ का परिचय पांच वाक्यों में दीजिए ?
उत्तर – इस पाठ में महाभारत युद्ध के आरम्भ में धृतराष्ट्र ने अपनी शान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था ! विदुर ने उन्हें स्वार्थ पर निति त्याग कर राजनीति के शाश्वत प्रामार्थिक उपदेश दिए थे ! इन्हें विदुर निति कहते है ! इन श्लोको में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए है |
S.N | Class 10th Sanskrit Subjective Notes |
पाठ – 1 | मङ्गलम् |
पाठ – 2 | पाटलिपुत्रवैभवम् |
पाठ – 3 | अलसकथा |
पाठ – 4 | संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः |
पाठ – 5 | भारतमहिमा |
पाठ – 6 | भारतीयसंस्काराः |
पाठ – 7 | नीतिश्लोकाः |
पाठ – 8 | कर्मवीर कथाः |
पाठ – 9 | स्वामी दयानन्दः |
पाठ – 10 | मन्दाकिनीवर्णनम् |
पाठ – 11 | व्याघ्रपथिक कथाः |
पाठ – 12 | कर्णस्य दानवीरता |
पाठ – 13 | विश्वशांतिः |
पाठ – 14 | शास्त्रकाराः |